Political leader on the post of President in Janata Dal U

Editorial: जनता दल यू में अध्यक्ष पद पर राजनीतिक उठापटक के मायने

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Political leader on the post of President in Janata Dal U

बिहार की सियासत इतनी संवेदनशील है कि यहां हवा से भी तेज गति से सब कुछ बदल जाता है। बिहार में एक राजनीतिक दल किसी अन्य के साथ मिलकर चुनाव में उतरता है, जीत दर्ज करता है और कम विधायकों के बावजूद सत्ता में आता है और कुछ समय बाद गठबंधन के अपने सहयोगी को छोड़ कर उससे ही नाता जोड़ लेता है, जिसके खिलाफ चुनाव लड़ा था। बीते कुछ समय के दौरान जनता दल यू ने जिस प्रकार के प्रपंच दिखाए हैं, उससे राजनीति के बिगड़े चेहरे पर और ज्यादा दाग उबर आए हैं।

जनता दल यू एक जमाने में ऐसे आदर्शवादी लोगों का दल होता था, जिन्होंने समाजवाद की परिभाषा को नया रूप दिया था, लेकिन आज वही जनता दल यू सत्ता हासिल करने का ऐसा हथकंडा बनाया जा चुका है, कि उसके नाम पर सवाल उठने लगे हैं। जनता दल यू के पूर्व अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह के संबंध में जैसे आरोप सामने आ रहे हैं, वे हैरान करने वाले हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अंदरखाने बगावत करके राजद नेता एवं उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का जैसा खेल खेला जा रहा था, वह अपनी ही पार्टी के साथ धोखा करार नहीं दिया जाएगा तो क्या कहा जाएगा।

यह दिलचस्प है कि उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के कथित प्रयास में राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह की जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से विदाई हो गई। यह भी अपने तरह का देश में पहला मामला होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने सूत्रों से इसकी पक्की सूचना मिली थी कि ललन सिंह जदयू के दर्जन भर विधायकों को तोडक़र तेजस्वी की सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके बाद एक मंत्री के कार्यालय में इन विधायकों की बैठक हुई। तर्क यह दिया गया कि विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी राजद के हैं। वे विधानसभा में जदयू विधायकों के गुट को मान्यता देकर सदस्यता बचा लेंगे। ऐसा करने पर इन विधायकों को मंत्री पद का भी प्रलोभन दिया गया। सुरक्षा का यह आश्वासन भी दिया गया कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते वह अलग गुट के विधायकों के विरूद्ध कार्रवाई के लिए विधानसभा अध्यक्ष को नहीं लिखेंगे, लेकिन योजना जमीन पर उतरती, इससे पहले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधायकों से संपर्क कर उन्हें मना लिया।  

दरअसल, नीतीश कुमार वह नेता हैं, जिनकी महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है, उनके संबंध में यह प्रसिद्ध हो चुका है कि वे पाला बदलने में माहिर हैं। वे भाजपा के साथ गलबहियां डालकर चुनाव में उतरते हैं, सरकार बनाते हैं और फिर बीच में ही पाला बदलकर दूसरी तरफ चले जाते हैं। बीते विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और फिर सरकार बनने के बाद ऐन वक्त पर भाजपा से किनारा करके राजद के साथ सरकार बना ली। वास्तव में, अब उनकी ही पार्टी के अध्यक्ष अगर उनके साथ वही खेल खेलने की तैयारी में थे तो यह उन्हें नागवार गुजरा। नीतीश कुमार  और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बीच अनेक बार अनबन देखने को मिली है, लेकिन यह मजबूरी है कि दोनों सरकार को जैसे-तैसे करके चला पा रहे हैं। हालांकि अब यह अपने आप में काफी चौंकाने वाली बात है कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए वह व्यक्ति सक्रिय था, जिसे खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। यानी नीतीश कुमार ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जोकि उनकी कुर्सी छीनने के लिए लालायित हैं। अब उन्होंने पार्टी को बचाने के लिए खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करवा लिया। ऐसे माहौल में जब नीतीश कुमार अपना घर नहीं बचा पा रहे हैं तो वे विपक्ष के इंडिया गठबंधन के नेतृत्वकर्ता किस प्रकार से बन सकते हैं।

गौरतलब है नीतीश और ललन सिंह का रिश्ता शुरू से अटूट माना जाता है। ललन कई बार संकटमोचक भी साबित हुए हैं, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद दोनों में टकराव हो गया। ललन सिंह का आरोप था कि राज्य में तैनात उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक आईपीएस अधिकारी उन्हें हराने का प्रयास कर रहे थे। जांच में यह आरोप सही पाया गया, लेकिन उस अधिकारी के विरूद्ध कार्रवाई नहीं की गई। नए परिदृश्य में जनता दल यू और राजद के रिश्ते कैसे रहेंगे, इसपर सभी की नजरें रहेंगी। हालांकि यह तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष नई चुनौती खड़ी होने वाली है। भाजपा ने उनके लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं, क्या नीतीश कुमार खुद को राष्ट्रीय नेता साबित करने में सफल रहेंगे।

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